कभी कभी,मेरी ख़्वाहिशें तुम संग
दूर तक का सफ़र तय कर जाती है,
तुम्हारा हाथ थामे मैं उन किनारों से भी होकर गुजरी हूँ,
जिन किनारों तक हमारी सीमाएँ ही नहीं है
क़भी चाँदनी रात में तुम संग बैठे बैठे मैंने
अनगिनत बातें की है,
क़भी बस चुप्पियों में वक़्त बिताया है,
क़भी तुम्हारी बाहों में सोते हुए रातें काटी है,
ये सारे पल बेशक़ीमती रहे हैं और ताउम्र ज़हन में क़ैद रहेंगे...
तुम्हारी बेहिसाब शिकायतों के बीच ही,
मैं महसूस कर लेती हूं प्यार तुम्हारा,
तुम्हारी अनकही तमाम बातों में भी प्यार के अतरंगी एहसास तैर जाते हैं,नहीं जानती मैं क्या हूँ तुम्हारे लिए, प्रेमिका,सहचरी,साथी या दोस्त
मेरे लिए तुम मेरा वो सुक़ून हो ,जिसका कोई विकल्प नहीं,
मेरे मन में तुम्हारे लिए केवल प्रेम शेष रह सकता है,और कुछ भी नहीं ...